संजय सिंह "कवि मन"
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बना देती है, अँधा,
कर देती हैं,कमजोर,
खा जाती हैं,इंसान को,
मिटा देती हैं,अच्छे बुरे का फर्क,
खड़ा कर देती हैं,बेबसी के चौराहे पर,
मार देती हैं, आत्मा को,
बन जाती हैं,अभिशाप,
किन्तु, यही,
भूख,
देती हैं,आँखों को नया सपना,
बना देती हैं, इरादों को मज़बूत,
जन्म देती हैं,गाँधी,भगतसिंहऔर आज़ाद को,
मिटाती हैं,इंसानियत में फर्क,
लाती है,सच्चाई के रास्ते पर,
सृजन करती हैं,नयी आत्मा का,
बन जाती हैं, वरदान,
यदि भूख, कुछ करने की हो,
कुछ पाने की हो,
कुछ बन जाने की हो,
चुनना पड़ता हैं,
अपनी भूख को,
उसकी खुराक को,
स्वयं ही,
सदैव ही ………………………………………………………………….
प्रस्तुति-
संजय सिंह,”बैरागी”
न सम्मान की चाह,न अपमान का भय
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