संजय सिंह "कवि मन"
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(1) सोचा न था कभी , की इस कदर बदल जाऊंगा,
इंसानियत को बेचकर, इतना आगे निकल जाऊंगा
ये सिर्फ चंद सिक्को की खनक थी, या बेहयाई मेरी,
वो(इंसानियत) रोती रही रात भर सडक पर मदद के लिए
और मैं सपने सुहाने कल के बुनता हुआ, बगल से गुजर गया |
संजय सिंह “भारतीय”
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