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मंजिल

संजय सिंह "कवि मन"
संजय सिंह "कवि मन"
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मंजिले होती नहीं, कभी,

आसानी से मिल जाने के लिए |

पर सिर्फ एक बूँद पसीने की ही,

काफी है,रेगिस्तान में फूल खिलाने के लिए |

खीँच दो इस ज़मी पे, अपने मेहनत की लकीर ,

सदियाँ बीत जाएँगी, उन्हें,इसे मिटने के लिए |

गर य़की नहीं मेरे अल्फासों पे,

तो आजमां के देख लो |

सच्चाई होती नहीं कभी,

झुठलाने के लिए |

न जाने कितने आये, और आकर चले गये,

कितनी सिद्दत लगेगी,तुम्हे ये समझाने के लिये |

प्रस्तुति

संजयसिंहभारतीय

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