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हिंदुस्तान

संजय सिंह "कवि मन"
संजय सिंह "कवि मन"
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हमने कब तुमसे तख़्त ताज,
और सम्मान माँगा था |
हम सबके सपनो में बसने वाला ,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
नाही तो हिन्दू और नाही,
मुस्लमान माँगा था |
हमारी सरहदों पर मिटने वाला,
बस एक सच्चा जवान माँगा था |
इंसानियत को रुसवा कर दे,
कब ऐसा इंसान माँगा था |
हमने तो केवल भगत सिंह जैसा,
एक सच्चा सपूत महान माँगा था |
तुम्हारे सियासी दंगों से बनने वाला,
कब वो मनहूस कब्रिस्तान माँगा था |
हम सबके सपनो में बसने वाला ,
एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
सबको भोजन, मुफ्त शिच्छा,तन पर कपड़े,
और चेहरों पर मुस्कान माँगा था |
हमने बस तुमसे भ्रस्टाचार मुक्त,

एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था |
पले सत्य बढे विश्वास,
नित – नित जीवन हो आसान |
सबको लेकर चलने वाला,
वह तरुण नौजवान माँगा था|
सबके हाँथो से गढ़ने वाला,

एक प्यारा सा हिंदुस्तान माँगा था|
शायद तुम कभी समझ भी न सको,
की हमने तुमसे कैसा इमान माँगा था |
क्या यही है वह देश जैसा तुमसे,
हमने अपने सपनो का हिंदुस्तान माँगा था|

प्रस्तुति-
संजय सिंह “भारतीय”

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